Biography of Shri Brajraj Sharan Devachary Shri ShriJi Maharaj

Anuj Sharan Verma
3 min readApr 27, 2021

--

निम्बार्क आचार्य परम्परा — ४४

श्री ब्रजराज शरण देवाचार्य श्री श्रीजी महाराज का जीवन चरित्र

( प्रेमलता मंजरी सखी के अवतार )

ब्रह्म — जीव — जगत्तत्त्वं सदा सत्यमिति ब्रुवन् ।
श्रीव्रजराजशरणो देवाचार्यो जगद्गुरु: ।।
दययोद्धारयन् जीवानुपदेशामृतैर्भुवि ।
पूज्यो विजयतां नित्यं वन्दारुणां सुरद्रुम: ।।

आचार्यप्रवर श्रीनिम्बार्कशरणदेवाचार्य श्री “श्रीजी” महाराज के पश्चात आपके ही परम कृपापात्र श्री व्रजराजशरणदेवाचार्यजी महाराज ने श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ को सुशोभित किया । विक्रम सम्वत् १८९७ से लेकर विक्रम सम्वत् १९०० तक आप श्रीआचार्य पीठासीन रहे । आपका अद्भुत वैदुष्य दिव्य प्रभाव से आचार्य पीठ का सर्वतोमुखी विकास हुआ । आपका आविर्भाव राजस्थान में जयपुर से कुछ ही दूरवर्ती सीकर — नगर के क्षेत्र में परम प्रख्यात लोहार्गल तीर्थ के समीप सराय ग्राम में पवित्र गौड विप्रकुल में हुआ । आचार्यवर्य श्रीव्रजराजशरणदेवाचार्य श्री “श्रीजी” महाराज श्रीवृन्दावन निम्बग्राम, नारदटीला — मथुरा में एवं जयपुर में विशेषत: विराजकर सम्प्रदाय तथा आचार्यपीठ की श्रीवृद्धि की जिसमें आप अग्रगण्य थे । आचार्यश्री के प्रति जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ, बूंदी आदि राज्यों के राजा — महाराजाओं की अपार निष्ठा थी । उनकी सश्रद्ध प्रार्थना पर आपश्री का उनके यहां राज — सम्मान राज वैभव के साथ पदार्पण होता रहता था ।

श्रीसनकादि संसेव्य भगवान् श्रीसर्वेश्वर की सेवा सहित आपने अनेक धामों तीर्थों की सुंदर यात्राएं की । अनेक श्रद्धावान भगवद्भक्तों के यहां पर आपका उनके भक्तिपूर्ण भावना के अनुसार पधारना होता रहता था । श्रीमद्भागवत का नित्य स्वाध्याय और उसके मधुर प्रवचन से भावुक भक्तजन भाव विभोर हो जाते थे । आपके सुंदर चित्रपट दर्शन एवं उपदेशमयी मंगल मुद्रा से जो भाव अभिव्यक्त हो रहा है वह वस्तुतः अद्भुत है, अपने हस्तकमल के अङकुष्ठ और तर्जनी उंगली को संयुक्त कर उपदेशमयी मुद्रा से तथा शेष तीन अंगुली जो ऊपर के भाग में दृष्टिगत है जिससे यह स्पष्ट परिलक्षित है — कि ब्रह्म,जीव और जगत् यह तीनों तत्व अनन्त, अनादि तथा सत्य है । ब्रह्म स्वतंत्र है जीव और प्रकृति रूप जगत् ब्रह्म के अधीन है । ब्रह्म और जीव का सेवक सेवक भाव ही परमोपादेय हैं । वस्तुतः आचार्यवरशर्य का यह दिव्य स्वरूप परम मंगलकारी है ।

यह दया के सागर थे और प्रभु के स्मरण को ही सब व्याधियों की औषधी बताया करते थे । चारों ओर निराश होकर मनुष्य इनकी शरण में आया करते थे और इन इनके पारसतुल्य कर का पावन स्पर्श कर कृतार्थ हो जाया करते थे ।

एक दिन एक वैश्य आपके पास आकर उपस्थित हुआ । वह संपत्तिशाली होते हुए भी बड़ा दुखी था । साधु — ब्राह्मणों की सेवा करता था, मंदिर में दर्शन करने आता था, फिर भी उसका मन बड़ा अशांत रहता था । सर्वदा हृदय में अशुभ आशंकाएं पैदा होती रहती थी । अनिष्ट की संभावनाएं उसे चारों ओर से घेरे रहती थी बालक के सिर में वेदना भी हो जाए तो उसे विश्वास होने लगता था कि अब नहीं बचेगा । दुकान बढ़ा कर आता तो चोरी का भय रहता । बुरे — बुरे स्वप्न और अशुभ शकुन उसकी चिंता को और अधिक बढ़ा देते ।

वेद्यों द्वारा चिकित्सा पर भी उसने बहुत — सा धन व्यय किया । ग्रहदशा बताने वाले ज्योतिषियों ने भी उसकी दुर्गति की । किंतु आशंकाओं का जोर निरंतर बढ़ता गया और उसके मस्तिष्क पर भी इसका प्रभाव पड़ने लगा । अंत में एक महात्मा ने उसे श्री “श्रीजी’ महाराज की शरण में जाने को कहा और वह वहां पहुंच गया ।

उसने अपनी व्यथा आचार्यश्री को श्रवण कराई । आचार्यश्री ने कहा — — तुम धन से ही सब कुछ खरीदना चाहते हो । प्रभु के निमित्त धन दोगे तो तुम्हें धन प्राप्त होगा, तन दोगे तो शरीर का स्वास्थ्य बढ़ेगा और मन दोगे तो मन शांत रहेगा । अपने मुंह खाया हुआ ही अंग लगता है । तुम दूसरों से कार्य करवा कर फल स्वयं लेना चाहते हो ।

वैश्य ने कहा — — आप जो आज्ञा करेंगे मैं वही करूंगा । आचार्यश्री ने उसे आदेश दिया कि कल से भगवान श्रीराधामाधवजी के मंदिर के सामने सोहनी सेवा करके भगवन्नाम की एक माला जप लिया करो । वैश्य ने उसी दिन से यह प्रभु — सेवा और भजन का व्रत धारण कर लिया और उसके मन में अशांति और आशंकाएं सदा — सर्वदा के लिए मिट गई ।

आपकी भी संस्कृत रचनाओं में — — “श्रीसर्वेश्वर प्रणति पद्यावली” नामक स्रोत बड़ा ही सुललित और भावपूर्ण है । आपका इस लीला संवरण समय विक्रम सम्वत् १९०० है । आपकी चरण पादुका श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ में विद्यमान है । पाटोत्सव दिवस जेष्ठ शुक्ल ५ ( पञ्चमी ) का है ।

!! जय राधामाधव !!

READ HERE FULL ABOUT NIMBARK SAMPRADAY : https://nimbarkparikar.blogspot.com/

--

--

Anuj Sharan Verma
Anuj Sharan Verma

Written by Anuj Sharan Verma

WHEN WORDS CAN'T SAY ANYTHING THAN BE SILENT. SHRI RADHE

No responses yet